पूर्णागिरि मेला
मार्च-अप्रैल के महीने में चैत्र नवरात्रि के दौरान पूर्णागिरि मंदिर में पूर्णागिरि मेला आयोजित किया जाता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूर्णागिरि आते हैं। वैसे तो पूर्णागिरि मंदिर में साल भर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते रहते हैं। आसपास की घाटियाँ दर्शन के लिए ऊपर चढ़ रहे भक्तों के पवित्र मंत्रोच्चार से गूंज उठती हैं, जिससे आध्यात्मिकता का माहौल बन जाता है। पूर्णागिरि से काली नदी मैदानी इलाकों में उतरती है और शारदा के नाम से जानी जाती है। यह 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। समुद्र तल से ऊपर और टनकपुर से. 20 कि.मी.दूरी पर है।
इस मंदिर के दर्शन के लिए वाहन से ठुलीगढ़ तक जा सकते हैं। इस स्थान से ट्रेक करना पड़ता है (टुन्यास तक सड़क निर्माणाधीन है)। बांस की चरहाई की चढ़ाई के बाद अवलाखान (नया नाम हनुमान चट्टी) आता है। इस स्थान से ‘पुण्य पर्वत’ का दक्षिण-पश्चिमी भाग देखा जा सकता है। एक और चढ़ाई टंकी के टीआरसी पर समाप्त होती है। अस्थायी दुकानों और आवासीय झोपड़ियों का क्षेत्र यहीं से शुरू होकर तुन्यास तक जाता है।
पूर्णागिरि पहाड़ी के उच्चतम बिंदु (मंदिर) से तीर्थयात्री काली का विस्तार, उसके द्वीप, टनकपुर की बस्ती और कुछ नेपाली गाँव देख सकते हैं। पुरानी बुराम देव मंडी पूर्णागिरि के बहुत करीब है। टनकपुर या पूर्णागिरि से तामली और यहां तक कि काली नदी के किनारे झूलाघाट तक ट्रेक करना संभव है।